- होम
- हमारे बारे में
- कार्य
- संसाधन
- दौरा कार्यक्रम
- प्रकाशन एवं प्रतिवेदन
- संपर्क
- कर्मचारी कोना
भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार भारत में असंगठित श्रमिकों का एक बहुसंख्यक और सबसे कमजोर वर्ग है। इनके कार्य का स्वभाव, इनकी आकस्मिक प्रकृति, नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच अस्थायी संबंध, अनिश्चित कार्यावधि, बुनियादी सुविधाओं की कमी और कल्याणकारी सुविधाओं की अपर्याप्तता है।
ऐसे कर्मकारों पर लागू मजदूरी, काम करने की दशा, सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण उपायों को विनियमित करने के लिए, भारत सरकार (भा.स.) ने भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम (बीओसीडब्ल्यू अधिनियम), 1996 अधिनियमित किया (अगस्त 1996)। बीओसीडब्ल्यू अधिनियम हर उस प्रतिष्ठान पर लागू होता है जो दस या अधिक भवन कर्मकारों को रोजगार देता है। ऐसे प्रत्येक प्रतिष्ठान को कार्य शुरू होने से 60 दिनों के अंदर अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत किया जाना होता है। आगे, अधिनियम के अंतर्गत लाभार्थी के रूप में पंजीकृत प्रत्येक भवन कर्मकार को, अपनी निधि से लाभ प्रदान करने के लिए प्रत्येक राज्य सरकार को भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड का गठन करना अपेक्षित है। भारत सरकार ने भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण उपकर अधिनियम, 1996 (उपकर अधिनियम) भी अधिनियमित किया (अगस्त 1996), जिसमें बीओसीडब्ल्यू अधिनियम के प्रयोजनार्थ उपकर का आरोपण और संग्रहण की परिकल्पना की गई है।
झारखण्ड सरकार (झा.स.) ने भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (रोजगार एवं सेवा शर्तों का विनियमन) झारखण्ड नियमावली, 2006 (झारखण्ड नियमावली) अधिसूचित किया (अगस्त 2007) और झारखण्ड भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड (बोर्ड) का गठन किया (जुलाई 2008)। बोर्ड एक कोष संचालित करता है, जिसे झारखण्ड भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण कोष के नाम से जाना जाता है।
सरकार, किसी निगम, निकाय या फर्म, किसी व्यक्ति या संगठन या व्यक्तियों के अन्य निकाय से संबंधित या उसके नियंत्रण में कोई प्रतिष्ठान, जो किसी भवन या अन्य सन्निर्माण कार्य में सन्निर्माण कर्मकारों को नियोजित करता है; और इसमें संवेदक से संबंधित प्रतिष्ठान शामिल है, लेकिन इसमें ऐसा व्यक्ति शामिल नहीं है जो ऐसे कर्मकारों को अपने निवास के लिए, किसी भवन या सन्निर्माण कार्य में नियोजित करता है, जिस निर्माण की कुल लागत दस लाख रुपये से अधिक नहीं है।