अनुच्छेद 148– भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक
भारत का एक नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक होगा जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति स्वयम अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेंगे तथा उन्हें अपने पद से केवल उसी रीति से उसी आधार पर हटाया जा सकेगा जिस रीति से और जिस आधार पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीस को हटाया जाता है।
प्रत्येक व्यक्ति जो भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के रूप में नियुक्त किया जाता है, पद ग्रहण करने के पूर्व राष्ट्रपति या उनके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष तृतीय अनुसूची में इस प्रयोजन हेतु दिये गए प्रारूप के अनुसार शपथ ग्रहण या प्रतिज्ञात करेंगे और उस अधिपत्र पर अपने हस्ताक्षर करेंगे।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक का वेतन और सेवा की अन्य शर्तें ऐसी होंगी जिसका निर्धारण संसद विधि द्वारा अवधारित करेगी जब तक यह शर्तें अवधारित नहीं की जाती तब तक यह ऐसी ही होंगी जैसे कि द्वितीय अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं परंतु न तो नियंत्रक महालेखापरीक्षक के वेतन में और न ही अनुपस्थिति छुट्टी, पेंशन या सेवानिवृत्ति की आयु के संबंध में उनके अधिकारों में उनकी नियुक्ति के पश्चात उनके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक अपना पदभार ग्रहण करने के पश्चात भारत सरकार के या राज्य सरकार के अधीन किसी भी अन्य पद के पात्र नहीं होंगे।
संविधान में किए गए प्रावधान एवं संसद द्वारा निर्मित विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए भारतीय लेखापरीक्षा व लेखा विभाग में सेवा करने वाले व्यक्तियों की सेवा की शर्तें तथा नियंत्रक महालेखापरीक्षक की प्रशासनिक शक्तियाँ ऐसी होगी जो नियंत्रक महालेखापरीक्षक से परामर्श करने के पश्चात राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों के तहत निर्धारित होगी।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के कार्यालय के प्रशासनिक व्यय जिनके अंतर्गत कार्यालय में कार्यरत सभी व्यक्तियों को दिए जाने वाले वेतन, भत्ते तथा देय पेंसन सम्मिलित हैं, भारत की संचित निधि पर भारित होगी।
अनुच्छेद 149– भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के कर्तव्य व शक्तियाँ
इस अनुच्छेद में नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक को यह शक्ति प्रदान की गयी है कि वह संघ तथा राज्य सरकारों के तथा अन्य प्राधिकरणों अथवा निकायों के लेखों के संबंध में ऐसे कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेंगे जिन्हें संसद द्वारा बनाई गयी विधि से या उसके अधीन विहित किया गया है और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता तब तक संघ और राज्यों के लेखाओं के संबंध में ऐसे कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेंगे जो संविधान के प्रारम्भ में ठीक पहले क्रमशः भारत डोमेंनियान के तथा प्रान्तों के लेखाओं के संबंध में भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक को प्रदत्त की गई थी या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य थीं।
अनुच्छेद 150– संघ एवं राज्यों के लेखो के प्रारूप
संघ के तथा राज्यों के लेखाओं को ऐसे प्रारूप में रखा जाएगा जो कि राष्ट्रपति द्वारा भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक से परामर्श के पश्चात विहित किए गए हैं।
अनुच्छेद 151– संपरीक्षा प्रतिवेदन
भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक संघ सरकार के लेखा संबंधी प्रतिवेदनों को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करेंगे जो इनको संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखवाएंगे।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक राज्य सरकार के लेखा संबंधी प्रतिवेदनों को राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करेंगे जो इनको राज्य के विधान मण्डल के समक्ष रखवाएंगे।
अनुच्छेद 279– निवल प्राप्ति आदि की गणना इत्यादि
इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंध में निवल प्राप्ति से किसी कर या शुल्क के संबंध में यह आगम उसका अभिप्रेत होता है जो कि उसके संग्रहण के व्यय को घटा कर आता है और उन उपबंधों के प्रयोजन हेतु किसी क्षेत्र में या उससे प्राप्त हुए किसी कर या शुल्क का अथवा किसी कर या शुल्क के किसी भाग का निवल प्राप्ति भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक द्वारा अभिनिश्चित और प्रमाणित किया जाता है तथा जारी प्रमाण-पत्र अंतिम माना जाता है।
उक्त कथनानुसार इस अध्याय के किसी अन्य अभिव्यक्त उपबंध के अधीन किसी ऐसी दसा में, जिसमें इस भाग के अधीन किसी शुल्क या कर का आगम किसी राज्य को सौप दिया जाता है या सौप दिया जाए, संसद द्वारा निर्मित विधि या राष्ट्रपति के उस रीति के आदेश का, जिसमें आगम कि गणना की जानी है, उस समय जिसमें या उस रीति का, जिससे कोई संदाय किया जाना है, एक वित्तीय वर्ष एवं द्वितीय वर्ष में समायोजन करने का और अन्य आनुषंगिक या सहायक विषयों पर उपबद्ध कर सकेंगे।
तृतीय अनुसूची
भारत के संविधान की तृतीय अनुसूची कि धारा–IV में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीसों तथा भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक द्वारा शपथ अथवा प्रतिज्ञान में पद ग्रहण करते समय इसे निम्नलिखित रूप से निर्धारित किया गया है:
“मैं, एबी,......... ईश्वर को साक्षी मानते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (या न्यायाधीश) या (भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक) के रूप में शपथ ग्रहण करता हूँ कि, मैं संविधान में विधि द्वारा स्थापित क़ानूनों का निष्ठापूर्वक पालन करूंगा, और भारत की संप्रभुता और अखंडता को अक्षुन्य रखते हुए विधिवत और निष्ठापूर्वक तथा अपनी योग्यता, ज्ञान और निर्णय के सर्वोत्तम कर्तव्यों का पालन भय, अनुग्रह, स्नेह या दुर्भावना के बिना करूंगा।”
छठी अनुसूची (अनुच्छेद 244 (2) तथा 275 (1)
असम, मेघालय, त्रिपुरा तथा मिजोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों[1] के प्रशासन संबंधी प्रावधान–
जिला एवं क्षेत्रीय निधि–
संविधान में किए गए प्रावधानों के अनुसार जैसा कि प्रकरण हो प्रशासनिक सुविधानुसार प्रत्येक स्वायत्त जिला निकाय हेतु एक जिला कोष प्रत्येक स्वायत क्षेत्र हेतु एक क्षेत्रीय निधि का गठन किया जाएगा जिसे प्रत्येक जिला तथा क्षेत्रीय परिसद को क्रमश: प्राप्त होने वाली राशी उपलब्ध कराई जाएगी।
[2] राज्यपाल महोदय जिला निधि के प्रबंधन के लिए, जैसा भी मामला हो, क्षेत्रीय निधि या उक्त निधि में से धन के भुगतान या आहरण के संबंध में पालन की जाने वाली प्रक्रिया के लिए, उसमें से धन कि वापसी, उसमें से धन कि अभिरक्षा तथा पूर्वोक्त मामलों से संबंधित अन्य आनुषंगिक मामलों के प्रबंधन हेतु नियम बना सकता है।
जिला परिषद के खाते या जैसा भी मामला हो, क्षेत्रीय परिषद के खातों के प्रारूप को जिस प्रकार भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक ने राष्ट्रपति महोदय के परामर्श से अनुमोदित किया है, उसी प्रारूप में रखा जाएगा।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक द्वारा जिला एवं क्षेत्रीय परिषदों की लेखपरीक्षा का कार्य जैसा भी वे उचित समझे किया जाएगा तथा किए गए लेखापरीक्षा प्रतिवेदन को नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक द्वारा राज्यपाल महोदय को परिषद के पटल पर रखने हेतु प्रस्तुत करेंगे।
[1] उपरोक्त प्रावधान के एवज में मिजोरम राज्य अधिनियम 1986 (1986 का 34) एस-39, कुछ विशेष शब्दों के लिए (20/02/1987 से प्रभावी)
[2] उपरोक्त प्रावधान के एवज में असम पुनर्गठन (मेघालय), अधिनियम 1969 (1969 का 55) एस 74 तथा उपपरिच्छेद 2 के लिए चौथी अनुसूची (2) जो (दिनांक 02/04/1970 से प्रभावी।