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भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य एवं नीति निर्देशक सिद्धांत न केवल महिलाओं को समानता प्रदान करते हैं, बल्कि राज्य को उनके द्वारा सामना किए जाने वाले सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक नुकसान को कम करने के लिए महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक भेदभाव के उपायों को अपनाने के लिए अधिकार भी देते हैं |
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार राजस्थान 2010-2016 के दौरान महिलाओं के विरूद्ध पंजीकृत अपराधों की उच्चतम संख्या के मामलों में देश के शीर्ष चार राज्यों में से एक था, 2017-2018 के दौरान पांचवें और 2019 के दौरान दूसरे स्थान पर था |
राजस्थान में महिलाओं के विरूद्ध पंजीकृत अपराध की घटनाएं 2010 में 18,344 से बढ़कर 2019 में 41,623 हो गई, अर्थात् 2010-19 के दौरान 10.86 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर पर 126.90 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई | इस अवधि में राजस्थान में महिलाओं के विरूद्ध अपराध दर अखिल भारतीय औसत और पड़ोसी राज्यों की तुलना में लगातार अधिक थी |
विभिन्न अधिनियमों, स्थानीय एवं विशेष अधिनियमों आदि के तहत निर्धारित निवारण तंत्र की कुशलता तथा किए गए या किए जाने वाले उपायों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए “राजस्थान में महिलाओं के विरूद्ध अपराध की रोकथाम, संरक्षण एवं निवारण” विषय पर निष्पादन लेखापरीक्षा की गई | लेखापरीक्षा में पांच विभागों- महिला अधिकारिता निदेशालय (मअनि), सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग (सान्याअवि), बाल अधिकारिता विभाग (बाअवि), गृह विभाग तथा विधिक सेवा प्राधिकरणों और दो आयोगों राजस्थान राज्य महिला आयोग (रारामआ) एवं राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (राराबाअसंआ) को शामिल किया गया |
निष्पादन लेखापरीक्षा में इन प्राधिकरणों द्वारा नौ स्थानीय एवं विशेष अधिनियमों के कार्यान्वयन को सम्मिलित किया गया है | यथाः
निष्पादन लेखापरीक्षा में मूलरुप से अप्रैल 2012 से मार्च 2017 तक की पांच वर्षों की अवधि को शामिल किया गया | लेखापरीक्षा निष्कर्षो पर अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह; शासन सचिव, महिला एवं बाल विकास; सदस्य सचिव, राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण; निदेशक सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग और निदेशक, बाल अधिकारिता के साथ 15 फरवरी 2019 को आयोजित समापन परिचर्चा में विचार-विमर्श किया गया | चूंकि राज्य सरकार द्वारा उत्तर में अवगत कराए गये कई मुद्दों पर कार्य प्रगति पर था, लेखापरीक्षा ने मार्च 2020 तक संबंधित विभागों द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं के अनुरुप प्रगति को सत्यापित करने का फैसला किया | यद्यपि, कोविड-19 महामारी से उत्पन्न बाधाओं के कारण लेखापरीक्षा (अगस्त से सितंबर 2020) को जयपुर और टोंक जिलों में स्थित इकाईयों तक सीमित रखा गया | बाद में, वैश्विक महामारी की स्थिति के संबंध में सुधार और संबंधित प्रतिबंधों में ढील के पश्चात् शेष छ: प्रशासनिक जिलों (उदयपुर, प्रतापगढ़, पाली, बारां, भरतपुर और कोटा) तथा सात पुलिस जिलों यथा उदयपुर, प्रतापगढ़, पाली, बारां, भरतपुर, कोटा ग्रामीण और कोटा शहर की लेखापरीक्षा (अगस्त-अक्टूबर 2021) की गई | लेखापरीक्षा संवीक्षा में पाया गया कि समग्र स्थिति में मामूली सुधार हुआ था तथा इन जिलों का प्रदर्शन अभी भी बहुत खराब था, जो चिंताजनक है |
संक्षिप्त में निष्कर्ष
महिला अधिकारिता निदेशालय, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग तथा बाल अधिकारिता विभाग अपराधों की रोकथाम एवं घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण, कार्यस्थलों पर लैंगिक उत्पीड़न, बाल विवाह, डायन-प्रताड़ना, दहेज प्रथा की रोकथाम एवं संरक्षण और बालिकाओं का यौन अपराधों से संरक्षण के लिए जिम्मेदार थे | इन विभागों को जनता के बीच जागरूकता सृजन करने तथा कार्यबल को प्रशिक्षित करने और संवेदनशील बनाने की आवश्यकता थी | हालांकि, महिलाओं के संरक्षण और विकास के लिए राज्य स्तर की एकीकृत कार्य योजना का अभाव, कार्यान्वित करने वाले प्रमुख कार्मिकों की जमीनी स्तर पर कमी, संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान न होना, पुनर्वास गृहों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव और सुरक्षा कमियों ने विभिन्न नियम/अधिनियम/नीतियों के प्रभावी प्रवर्तन में बाधा उत्पन्न की |
पुलिस विभाग महिलाओं से संबंधित अपराधों को पंजीकृत करने और समय पर जांच के लिए जिम्मेदार था | हालांकि, पुलिस थानों के माध्यम से सीधे दर्ज कराने के स्थान पर वैकल्पिक माध्यम जैसे अदालत के हस्तक्षेप से दर्ज मामलों की अधिक संख्या, बलात्कार जैसे संवेदनशील अपराधों से संबंधित नमूनों को एकत्र करने, अग्रेषित करने और जांच करने में शिथिलता, महिलाओं से संबंधित अपराधों के क्षेत्र में पुलिस विभाग के अपर्याप्त कार्यप्रणाली की ओर इंगित करती है | इसके अलावा, विधिक सेवा प्राधिकरण विधिक जागरूकता पैदा करने, विधिक सहायता प्रदान करने और पीड़ितों को समय पर प्रतिकर वितरण को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार थे| हालांकि, प्रमुख कार्मिकों की कमी, अद्यतन प्रशिक्षण सामग्री की कमी और निर्णय लेने में देरी के कारण पीड़ितों को प्रभावी विधिक सहायता और उचित प्रतिकर से वंचित रहना पड़ा |