झारखंड

प्रतिवेदन संख्‍या 2 वर्ष 2015 - सामान्‍य, सामाजिक एवं आर्थिक (गैर-सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम) प्रक्षेत्र, झारखण्‍ड सरकार

दिनांक जिस पर रिपोर्ट की गई है:
Thu 27 Aug, 2015
शासन को रिपोर्ट भेजने की तिथि:
Mon 27 Apr, 2015
सरकार के प्रकार:
राज्य
क्षेत्र पर्यावरण एवं सतत विकास,वित्त,कृषि एवं ग्रामीण विकास,कला, संस्कृति एवं खेल,सामाजिक कल्याण,सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर,शिक्षा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण,सामान्य क्षेत्र मंत्रालयों और संवैधानिक निकायों

अवलोकन

विहंगावलोकन

इस प्रतिवेदन में तीन अध्‍याय सम्मिलित हैं: प्रथम अध्‍याय में राज्‍य की वित्‍तीय स्थिति, योजना तथा लेखापरीक्षा का संचालन और लेखापरीक्षा प्रतिवेदन का अनुपालन है। इस प्रतिवेदन का अध्‍याय दो आठ निष्‍पादन लेखापरीक्षा समीक्षा के जाँच परि‍णामों से संबंधित है तथा अध्‍याय तीन विभिन्‍न विभागों के अनुपालन लेखापरीक्षा से संबंधित है। इस प्रतिवेदन में निष्‍पादन लेखापरीक्षा एवं अनुपालन लेखापरीक्षा कंडिकाओं के जाँच परि‍णाम सम्मिलित हैं जिसका कुल मौद्रिक मूल्‍य ` 445.66 करोड़ है।

भारतीय लेखा तथा लेखापरीक्षा विभाग हेतु विहित लेखा-परीक्षण मानकों के अनुसार लेखापरीक्षा संचालित की गयी है। लेखापरीक्षा नमूनों का चयन, सांख्यिकीय नमूना प्रणाली के साथ-साथ जोखिम आधारित विवेकपूर्ण नमूना के आधार पर किया गया है। प्रत्‍येक निष्‍पादन लेखापरीक्षा में अंगीकृत विशेष लेखापरीक्षा पद्धति का उल्‍लेख किया गया है। सरकार के दृष्टिकोण ध्‍यान में रखते हुए लेखापरीक्षा नि‍ष्‍कर्ष नि‍काले गये हैं और अनुशंसाएँ की गई है। प्रमुख लेखापरीक्षा के जाँच परि‍णामों का सार इस वि‍हंगावलोकन में प्रस्‍तुत कि‍या गया है।

1.      कार्यक्रमों/कार्यकलापों/विभागों का निष्‍पादन लेखापरीक्षा

 

  1. संपूर्ण स्‍वच्‍छता अभियान/निर्मल भारत अभियान पर निष्‍पादन लेखापरीक्षा

भारत सरकार ने खुले में शौच की आदत को खत्‍म करने के व्‍यापक उद्देश्‍य के साथ ग्रामीण क्षेत्र में स्‍वच्‍छता सुविधा सुनिश्‍चित करने हेतु समुदाय आधारित एक व्‍यापक कार्यक्रम संपूर्ण स्‍वच्‍छता अभियान (टी.एस.सी.) को वर्ष 1999 में प्रारंभ किया। कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए, पूर्णत: स्‍वच्‍छ और खुले में शौच से मुक्‍त ग्राम पंचायतों, प्रखंडों और जिलों के लिए उपलब्धि उपरांत एक पुरस्‍कार योजना, निर्मल ग्राम पुरस्‍कार योजना (एन.जी.पी) को एक प्रोत्‍साहन योजना के रूप में 2003 में प्रारंभ किया गया। एन.जी.पी. की सफलता से उत्‍साहित होकर 01 अप्रैल 2012 से टी.एस.सी. को निर्मल भारत अभियान नाम दिया गया था। एन.बी.ए. का उद्देश्‍य ग्रामीण क्षेत्रों में स्‍वच्‍छता आच्‍छादन में तेजी लाना था ताकि‍ ग्रामीण समुदाय को पूर्णत: आच्‍छादित करते हुए 2022 तक नि‍र्मल भारत के सपनों को साकार किया जाय।

योजना के नि‍ष्‍पादन लेखापरीक्षा में ज्ञात हुआ कि कार्यान्‍वयन अभि‍करणों को स्‍थापित करने में विशेष रूप से देरी हुई। 2009-14 के दौरान कार्यक्रम प्रबंधन इकाई (पी.एम.यू.) कुल उपलब्‍ध निधि (` 449.25 करोड़) में से केवल 58 प्रतिशत (`262.65 करोड़) का उपयोग कर सका। वास्‍तविक मांग/सेवाओं की आवश्‍यकता तथा आधारभूत संरचना के आकलन के लिये आवश्‍यक प्रारंभिक या आधारभूत सर्वेंक्षण के बगैर ही पी.एम.यू. द्वारा लक्ष्‍य निर्धारित किया गया। ग्राम पंचायत/प्रखंड से कोई सूचना प्राप्‍त किये बिना जिला स्‍तर पर वार्षिक कार्यान्‍वयन योजनाएँ (ए.आई.पी.) तैयार की गई थी। मार्च 2014 तक केवल 22 प्रतिशत (5.84 लाख) बी.पी.एल और सात प्रतिशत (1.75 लाख) ए.पी.एल. घरों में कार्यरत शौचालय थे। पी.एम.यू.
2012-14 के दौरान निर्धारित सूचना, शिक्षा एवं संचार (आई.ई.सी.) कार्याकलापों का केवल 18 प्रतिशत ही संपन्‍न कर पाया, जो स्‍वच्‍छता सुवि‍धाओं की मांग को बढ़ा सकता था। लेखा तथा अंकेक्षण के निर्धारित प्रक्रियाओं से विचलन हुआ जि‍सके कारण प्रति‍वेदि‍त तथा वास्‍तविक आकड़ों में भिन्‍नता आई। प्रत्‍येक स्‍तर पर आवश्‍यक अनुश्रवण का अभाव था। एन.बी.ए. के कार्यान्‍वयन में समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आवश्‍यक सामाजिक अंकेक्षण नहीं किया गया। राज्‍य समीक्षा मिशन द्वारा राज्‍य में टी.ए.सी./एन.बी.ए. के प्रभाव की समीक्षा अभी की जानी थी।

(कंडिका 2.1)

(ii) झारखण्‍ड में राजकीय महिला आई.टी.आई. एवं राजकीय महिला पॉलिटेक्निकों की स्‍थापना और उन्‍नयन

कौशल विकास पर राष्‍ट्रीय नीति सम्‍माननीय रोजगार हासिल करने में उन्‍हें मदद करने के लिए सभी सामाजिक समूहों को विशेष रूप से महिलाओं और समाज के वंचित वर्गों के लिए कौशल विकास के समान अवसर प्रदान करता है। इस प्रयोजन के लिए, राज्‍य में राजकीय महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्‍थानों (डब्‍ल्यू.आई.टी.आई.) और राजकीय महिला पॉलिटेक्निकों (जी.डब्‍ल्यू.पी.) की स्‍थापना की गई थी। डब्‍ल्यू.आई.टी.आई. और जी.डब्‍ल्यू.पी. के मुख्‍य उद्देश्‍य कुशल श्रमिकों का उद्योग के लिए निरंतर उपलब्‍धता सुनिश्चित करना था। झारखण्‍ड में राजकीय डब्‍ल्यू.आई.टी.आई. और जी.डब्‍ल्यू.पी. की स्‍थापना और उन्‍नयन का निष्‍पादन लेखापरीक्षा फरवरी से सितम्‍बर 2014 के बीच किया गया।

यह अवलोकन किया गया कि डब्‍ल्यू.आई.टी.आई. को कई कमि‍यों का सामना करना पड़ा, जैसे कि (i) डब्‍ल्यू.आई.टी.आई. राँची और जमशेदपुर में मौजूदा व्‍यवसाय को उत्‍क्रमित नहीं किया गया था; (ii) डब्‍ल्यू.आई.टी.आई. में कुछ अलोकप्रिय व्‍यवसायों को संचालित किया जा रहा था जबकि स्‍वीकृत व्‍यवसाय परिचालन में नहीं थे; (iii) राज्‍य परिषद् द्वारा वोकेशनल प्रशिक्षण (एस.सी.भी.टी.) के लिए सफल प्रशिक्षुओं को जो वोकेशनल प्रमाण पत्र जारी किया गया था, वे अस्‍थायी प्रकृति के थे, क्‍योंकि एस.सी.भी.टी. को किसी भी व्‍यवसाय की संबद्धता देने के लिए अधिकृत नहीं किया गया था। (iv) जी.डब्‍ल्यू.पी. का सुदृढ़ीकरण और आधुनिकीकरण नहीं किया जा सका था और वहाँ उपकरणों की कमी बनी हुई थी। इसके अलावा, नमूना-जाँचित यूनिटों में आधारभूत संरचना का अभाव, शैक्षणि‍क एवं गैर-शैक्षणि‍क कर्मियों, औजार और संयंत्रों की कमी थी। 

(कंडिका 2.2)

(iii) झारखण्ड में राजकीय विश्वविद्यालयों के कार्यकलाप

आयोजन तथा वित्तीय प्रबंधन, शैक्षणिक गतिविधियों की स्थिति, आधारभूत संरचना की पर्याप्ता तथा मानव संसाधन प्रबंधन एवं अनुश्रवण तंत्र की जाँच हेतु झारखण्ड के तीन विश्वविद्यालयों-विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हज़ारीबाग, नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय, मेदिनीनगर एवं कोल्हान विश्वविद्यालय, चाईबासा तथा इनके अधीन सोलह अंगीभूत महाविद्यालयों पर एक निष्पादन लेखापरीक्षा “झारखण्ड में राजकीय विश्वविद्यालयों के कार्यकलाप” संचालित की गयी।

निष्पादन लेखापरीक्षा के दौरान यह पाया गया कि नमूना-जाँचित विश्वविद्यालयों द्वारा कुल ` 101.23 करोड़ अनुदान राशि का कम उपयोग किया गया था। योजनामद की ` 19.14 करोड़ की राशि निदेशालय के व्यक्तिगत निक्षेप खाता में पड़ी हुई थी। ` 17.13 करोड़ का अग्रिम विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों के शैक्षणिक/गैर शैक्षणिक कर्मचारी के विरुद्ध बकाया था। शुल्क एवं फार्मों की बिक्री से ` 3.48 करोड़ कम की वसूली की गयी। गैर-उपयोग/देर से उपयोग किये जाने के कारण विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हज़ारीबाग को ` 6.21 करोड़ की अनुदान राशि विमुक्‍त नहीं की गयी। विज्ञान  एवं मानविकी में स्नातकोत्तर तथा स्नातक पाठ्यक्रमों के लिये निर्धारित शिक्षक छात्र अनुपात  क्रमश: 1:10 एवं 1:15 तथा 1:25 एवं 1:30 के विरुद्ध स्नातकोत्तर विभागों तथा नमूना जाँच किये गये महाविद्यालयों में यह अनुपात क्रमश: 1:15 से 1:113 तथा 1:41 से 1:722 के बीच पायी गयी। स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों की अंतर्ग्रहण क्षमता का अल्पोपयोग विनोबा भावे विश्वविद्यालय में 2 से 71 प्रतिशत के बीच, नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय में 16 से 95 प्रतिशत के बीच तथा कोल्‍हान विश्वविद्यालय में 24 से 100 प्रतिशत के बीच पाया गया। विनोबा भावे विश्वविद्यालय में ` 5.70 करोड़ की लागत से तैयार की गयी आधारभूत संरचना 10 से 55 महीनों तक अनुपयुक्त पड़ी हुई थी। स्थापना के पाँच वर्ष से अधिक के बाद भी दोनों नव निर्मित विश्वविद्यालय- नीलाम्बर पीताम्बर विश्वविद्यालय तथा कोल्हान विश्वविद्यालय  का अपना परिसर नहीं था। शैक्षणिक तथा गैर शैक्षणिक कर्मचारियों की कमी क्रमश: 22.47 से 62.50 तथा 38.08 से 62.81 प्रतिशत के बीच पायी गयी। अधिषद और अभिषद की बैठकें निर्धारित संख्या में नहीं हुईं और विश्‍वविद्यालय/इन विश्‍वविद्यालयों द्वारा पेश कार्यक्रमों को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद/राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड द्वारा मान्यता नहीं दी गयी।

(कंडिका 2.3)

(iv) धनबाद समूह सहित धनबाद जिला में पर्यावरण कानूनों के अनुपालन पर निष्‍पादन लेखापरीक्षा

धनबाद समूह सहित धनबाद शहर में पर्यावरण कानूनों के अनुपालन की जाँच के लिए एक समीक्षा की गयी। पर्यावरण प्रदूषण के नियंत्रण तथा रोकथाम के लिए विभिन्‍न अधिनियमों और नियमों का अनुपालन अपर्याप्‍त था। पेयजल (पारंपरिक उपचार के बिना लेकिन कीटाणु शोधन के बाद) का बायोकेमिकल आक्‍सीजन डिमांड (बी.ओ.डी.) का स्‍तर 2 मि.ग्रा./लीटर अथवा कम होना चाहिए, लेकिन धनबाद के तीन स्‍थलों तेलमच्चो, डोमागढ़ और जामाडोबा में 2009-14 के दौरान अधिकतम स्‍तर 2.5 मि.ग्रा./लीटर से 8.2 मि.ग्रा./लीटर के बीच था। धनबाद कार्य योजना में चिन्हित गतिविधियों का कार्यान्‍वयन नहीं किया गया। जैव चिकित्‍सा अवशिष्‍ट का निपटान जैव चिकित्‍सा अवशिष्‍ट (प्रबंधन एवं हैंडलिंग) नियम के अनुसार नहीं हुआ तथा झारखण्‍ड प्रदूषण नियंत्रण पर्षद द्वारा पर्यावरण नियमों का अनुश्रवण एवं प्रवर्तन प्रभावी ढंग से नहीं किया गया।

(कंडिका 2.4)

(V) झारखण्‍ड में बालिकाओं के कल्‍याण एवं सुरक्षा हेतु योजनाओं का क्रियान्‍वयन

भारत सरकार एवं झारखण्‍ड सरकार ने बालिकाओं के कल्‍याण एवं सुरक्षा हेतु विभिन्‍न योजनाओं यथा किशोरी शक्ति योजना (के.एस.वाई.), राजीव गाँधी किशोरी बालिका सशक्तिकरण योजना (सबला), मुख्‍यमंत्री कन्‍यादान योजना (मु.क.यो.) और मुख्‍यमंत्री लक्ष्‍मी लाडली योजना (मु.ल.ला.यो.) का शुभारंभ किया। इन सभी योजनाओं का निष्‍पादन लेखापरीक्षा 2009-14 के अवधि को आच्‍छादित करते हुए यह निर्धारित करने के लिए किया गया कि क्‍या इन योजनाओं के क्रियान्‍वयन से बालिकाओं के सशक्तिकरण एवं सुर‍क्षा के उद्देश्‍यों की पूर्ति हुई।

निष्‍पादन लेखापरीक्षा से उद्घटित हुआ कि के.एस.वाई. एवं सबला योजना के अन्‍तर्गत स्‍वास्‍थ्‍य योजना के अलावे किसी भी दूसरे विभाग के योजनाओं के साथ योजनाबद्ध अभिसरण एवं अग्रेतर संयोजन नहीं किया गया था। राज्‍य सरकार द्वारा पूर्व में प्राप्‍त अनुदान का उपयोगिता प्रमाण पत्र एवं वार्षिक कार्ययोजना को जमा नहीं किये जाने के कारण के.एस.वाई. के अन्‍तर्गत भारत सरकार द्वारा 2009-10 एवं 2012-13 में कोई निधि विमुक्‍त नहीं की गई। 2009-10, 2012-13 एवं 2013-14 के दौरान के.एस.वाई. अन्‍तर्गत किशोरी किट उपलब्‍ध नहीं कराया गया। सबला योजना के अन्‍तर्गत प्रशिक्षण किट 2010-11, 2011-12 एवं 2013-14 में उपलब्‍ध नहीं कराये गये। विभाग द्वारा नमूना-जाँचित चार के.एस.वाई जिलों में 2009-14 अवधि के दौरान एवं दो सबला जिलों में 2010-11, 2012-13 एवं 2013-14 के स्‍वास्‍थ्‍य जाँच हेतु किशोरी स्‍वास्‍थ्‍य मेला/किशोरी दिवस का आयोजन नहीं कराया गया। नियमानुसार सबला के पोषाहार घटक के तहत आवंटित निधि नामांकित बालिकाओं को वर्ष में 300 दिनों का टी.एच.आर. उपलब्‍ध कराने हेतु पर्याप्‍त नहीं थी। मु.क.यो. के तहत प्राप्त आवेदनों की संख्‍या एवं उनके रद्द किये जाने से सम्‍बन्धित अभिलेख संधारित नहीं थे। मु.ल.ला. योजना के अन्‍तर्गत 2011-14 के दौरान संस्‍थागत प्रसव कम होने के कारण लाभार्थियों का आच्‍छादन प्रतिशत 18 से 28 के बीच रहा। के.एस.वाई., सबला एवं मु.ल.ला. योजनाएँ 2009-14 के दौरान ज्‍यादातर गैर-अनुश्रवित रहीं। योजनाओं के क्रियान्‍वयन के लिए संरचनाओं एवं मानव बल की कमी थी।

(कंडिका 2.5)

(vi)  अपराध एवं अपराधी खोज नेटवर्क प्रणाली की तत्‍परता पर सूचना प्रौद्योगिकी लेखापरीक्षा 

भारत सरकार द्वारा पुलिस की परिचालन क्षमता बढ़ाने तथा नागरिक सेवा में सुधार की दृष्टि से सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में कार्यान्वित करने के लिए अपराध एवं अपराधी खोज नेटवर्क प्रणाली (सी.सी.टी.एन.एस.) परियोजना का ढ़ाँचा तैयार किया गया (मई 2008) जिसे मार्च 2012 तक पूर्ण करना था। झारखंड में परियोजना को प्रायोगिक चरण के सफलतापूर्वक समाप्ति के बिना ही लागू (फरवरी 2013) कर दिया गया तथा राज्य में परियोजना की शुरुआत (फरवरी 2010) से चार वर्ष की समाप्ति के बाद भी ‘गो-लाइव’ नहीं किया जा सका।

परियोजना कार्यान्‍वयन की कई गतिविधियाँ अर्थात साइट तैयारी, हार्डवेयर संधारण, नेटवर्क संयोजन आदि को सभी चिन्हित स्थानों पर पूरा नहीं किया जा सका तथा प्रणाली को थाना स्तर पर आंशिक रूप से स्टेशन डायरी तथा प्राथमिकी के पूर्व-दिनांकित प्रविष्टि के लिये उपयोग में लाया जा रहा था। विरासत/ऐतिहासिक आँकड़ों को डिजिटाइज्ड किया गया था परंतु उच्च-प्रभावी त्रुटियों के कारण इनका उपयोग नहीं हुआ। अपराध की जांच तथा अपराधियों की खोज के लिए अपराध एवं अपराधियों का राष्ट्रीय आँकड़ा-संग्रह बनाने का उद्देश्य नहीं प्राप्त किया जा सका क्योंकि डिजिटाइज्ड आँकड़ों को सी.सी.टी.एन.एस. आँकड़ा संग्रह में शामिल नहीं किया जा सका।

कोर एप्‍लीकेशन सॉफ्टवेयर (कैस) का राज्‍य की विशिष्‍ट आवश्‍यकताओं के अनुरूप अनुकूलन तथा विन्यास नहीं किया गया। विकसित विस्‍तार मॉड्यूलों को कैस के साथ एकीकृत नहीं किया गया। तृतीय पक्ष स्वीकृति परीक्षण, लेखापरीक्षा  तथा प्रणाली की सुरक्षा तथा नियंत्रण पहलुओं का प्रमाणीकरण नहीं करने के कारण, कैस एप्‍लीकेशन में सत्यापन नियंत्रणों की कमी थी। चार थानों (राँची जिला पुलिस में कोतवाली, डोरण्डा एवं पिठोरिया तथा खूंटी जिला पुलिस में तोरपा) के वर्ष 2013 से संबंधित आँकडे संस्करण-नियंत्रण तथा प्रलेखित बैकअप और पुनर्स्थापन नीति के अभाव में स्थायी रूप से नष्ट हो गए।

(कंडिका 2.6)

(vii)    जनजातीय उपयोजना (शिक्षा एवं स्‍वास्‍थ्‍य प्रक्षेत्र)

भारत सरकार ने अनुसूचित जनजातियों (अ.ज.जा.) और समाज के अन्‍यों के बीच विकासात्‍मक दूरी को कम करने के लिए जनजातीय उपयोजना की  नीति को प्रारंभ किया जिसमें कम से कम अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्‍या के अनुपात में योजना संसाधनों को आवंटित किया जाना है।

आठ स्‍वास्‍थ्‍य और शिक्षा से संबंधित योजनाएँ जिसमें जनजातीय उपयोजना के घटक हैं, को समीक्षा के लिए चयनित किया गया क्‍योंकि ये मानव संसाधन विकास को केन्द्रित हैं। शिक्षा क्षेत्र के अन्‍तर्गत चयनित योजनाएँ थे (i) सर्वशिक्षा अभियान (स.शि.अ.), (ii) मध्‍याह्न भोजन योजना और (iii) राष्‍ट्रीय माध्‍यमिक शिक्षा अभियान (रा.मा.शि.अ.) तथा स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र के अन्‍तर्गत (i) प्रतिरक्षण, (ii) फ्लेक्‍सीपुल, (iii) आधारभूत संरचना संधारण योजना (आई.एम.एस.), (iv) कैंसर, मधुमेह, ह्रदय संबंधी रोग और हदयाघात के रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्‍ट्रीय कार्यक्रम (एन.पी.सी.डी.सी.एस.) और (v) बुजुर्गों के लिए स्‍वास्‍थ्‍य देखरेख हेतु राष्‍ट्रीय कार्यक्रम (एन.पी.एच.सी.ई.) योजनाएँ थीं। निष्‍पादन लेखापरीक्षा वर्ष 2011-12 से 2013-14 के अवधि के लिए किये गए थे।

हमने पाया कि संबंधित योजनाओं के जनजातीय उपयोजना अवयव के लिए अलग से योजनाकरण नहीं किया गया था। जनजातीय उपयोजना के घटकों के अन्‍तर्गत विमुक्‍त निधियों के लिए अलग से अभिलेख भी संधारित नहीं किए गए थे तथा जनजातीय उपयोजना के व्‍यय को पृथक और पता करने के लिए तंत्र की कमी थी। रा.शि.अ. योजना के अंतर्गत राज्‍य के हिस्‍से के निधि को विलम्‍ब से विमुक्‍त किया गया था। योजना निर्देशों के विपरीत, स्‍थानीय भाषाओं (कुड़ुख, संथाली, खड़ि‍या, मुंडारी और हो) में पाठ्य पुस्‍तकों का मुद्रण नहीं किया गया था और स.शि.अ. के अंतर्गत जनजातीय बच्‍चों में नहीं बाँटे गए थे। स.शि.अ. के अन्‍तर्गत 2011-12 और 2013-14 के दौरान छात्रों को नि:शुल्‍क पोशाक नहीं बाँटे गए थे और 2012-13 में देर से बाँटे गये थे। मध्‍याह्न भोजन योजना के कार्यान्‍वयन के लिए वार्षिक कार्य योजना और बजट (वा.का.यो.एवं ब.), विद्यालय स्‍तर पर वास्‍तविक जरूरतों को बिना विचार किए तैयार किए गये थे जिससे खाद्यान्न और खाना पकाने की लागत पर कम आवंटन किया गया था।

बच्‍चों के प्रतिरक्षण के अंतर्गत लक्ष्‍य के विरूद्ध कम उपलब्‍धि प्राप्‍त हुई थी। एन.पी.सी.डी.सी.एस. और एन.पी.एच.सी.ई. के कार्यान्‍वयन के लिए 2011-13 में वार्षिक योजनाएँ नहीं बनाई गई थी और अस्‍पताल में पर्याप्‍त जगह की अनुपलब्‍धता तथा मेडिकल और पारा मेडिकल स्‍टाफ की नियुक्ति नहीं करने के कारण कार्यक्रम के अंतर्गत बताए गए निर्धारित सेवाएँ लाभार्थियों को प्रदान नहीं किए गए थे।

 (कंडि़का 2.7)

(viii)  झारखंड में सौर ऊर्जा कार्यक्रमों का क्रि‍यान्‍वयन

राज्‍य में पुनर्नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने के लि‍ए झारखण्‍ड सरकार द्वारा वर्ष 2001 में झारखंड रि‍न्‍यूएवल इनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (ज्रेडा) की स्‍थापना राज्‍य के प्रधान अभि‍करण के रूप में हुई। राज्‍य में सौर ऊर्जा कार्यक्रमों यथा सौर फोटोवोल्‍टाइक कार्यक्रमों, सौर ताप कार्यक्रम तथा दूरस्‍थ ग्राम विद्युतीकरण कार्यक्रम का क्रियान्‍वयन उन क्षेत्रों में जहाँ पारंपरिक विद्युत नहीं था या अनियमित था को पारंम्‍परिक विद्युत उपलब्‍ध कराने तथा जिला, प्रखंड एवं पंचायत कार्यालयों में ई-गवर्नेंस के लिए विद्युत बैकअप प्रदान करने हेतु किया गया था।

सौर ऊर्जा कार्यक्रमों के नि‍ष्‍पादन लेखापरीक्षा में उद्घटित हुआ कि‍ ज्रेडा ने वर्ष 2009-10 से 2013-14 तक उपलब्‍ध राशि ` 223.42 करोड़ में से ` 121.36 करोड़ व्‍यय कि‍या। आगे, वर्ष 2009-12 तथा 2013-14 के दौरान् सौर जल ताप प्रणालि‍यों के अधि‍ष्‍ठापन हेतु प्रस्‍ताव नहीं भेजने के कारण ज्रेडा ` 2.66 करोड़ के केन्‍द्रीय वि‍त्‍तीय सहायता प्राप्‍त करने में वि‍फल रहा। राज्‍य में 18,000 मेगावाट के सौर क्षमता के वि‍रूद्ध मात्र 17 मेगावाट के सौर विद्युत संयंत्रों की अधिष्‍ठापना की जा सकी। वर्ष 2011-14 के दैरान सौर ऊर्जा के कम उत्‍पादन के कारण झारखण्‍ड राज्‍य वि‍द्युत बोर्ड पुनर्नवीकरणीय क्रय  दायि‍त्‍व के 275.62 मि‍लि‍यन ईकाई के लक्ष्‍य को पूरा नहीं कर सका। आगे, ग्राम पंचायतों में 4,423 सौर विद्युत संयंत्रों (एस.पी.पी.) में से 2,576 के पूरा नहीं करने के कारण ग्रीड-असम्‍बद्ध सौर विद्युत संयंत्रों के द्वारा ई-गवर्नेंस सेवा हेतु नि‍र्बाध विद्युत आपूर्ति‍ को सुनि‍श्‍चि‍त नहीं कि‍या जा सका। दूरस्‍थ ग्राम वि‍द्युतीकरण कार्यक्रम के अन्‍तर्गत व्‍यापक संधारण संवि‍दा अवधि‍ के भीतर ज्रेडा ने अधि‍ष्‍ठापि‍त सौर ऊर्जा प्रणालि‍यों की मरम्‍मति‍ एवं संधारण को सुनि‍श्‍चि‍त नहीं किया।

                                                     (कंडि‍का 2.8)

2.   अनुपालन लेखापरीक्षा निष्‍कर्ष

लेखापरीक्षा ने विवेचित क्षेत्रों में महत्‍वपूर्ण कमियों को पाया, जो राज्‍य सरकार की प्रभावशीलता को प्रभावित करता है। अनुपालन लेखापरीक्षा से उत्‍पन्‍न कुछ प्रमुख लेखापरीक्षा निष्‍कर्षों (तेरह कं‍डिकाओं) को प्रतिवेदन में प्रस्‍तुत किया गया है। प्रमुख टिप्‍पणीयाँ नियमों एवं विनियमों के गैर-अनुपालन, औचित्‍य के विरूद्ध लेखापरीक्षा तथा अपर्याप्‍त तर्कसंगत व्‍यय के मामले एवं दृष्टिचूक/शासन की विफलता से संबंधित है। कुछ का उल्‍लेख नीचे किया गया है:

  • विभाग से संशोधित प्रशासनिक स्वीकृति प्राप्त किये बिना, अनुमोदित कार्य क्षेत्र के बाहर ग्रेड-I और ग्रेड-II ग्रामीण पथ के साथ गार्डवाल का निर्माण करने के परिणामस्‍वरूप ` 64.98 लाख का अनियमित व्यय हुआ।

(कंडि‍का 3.1.1)

  • राजेन्द्र आर्युविज्ञान संस्थान द्वारा श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा निर्धारित परिवर्तनीय मंहगाई भत्ता दर की अनदेखी कर दैनिक मजदूरों को ` 28.66 लाख का अधिक्य भुगतान।

(कंडि‍का 3.1.2)

  • मूल आकलन में बिटूमिनस मैकाडम (बी.एम.) और सेमी डेन्‍स बिटूमिनस कंक्रीट (एस.डी.बी.सी.) के प्रावधान नहीं किये जाने और नक्‍सल समस्‍या के आधार पर ठेकेदारों के निवेदन पर उच्‍च दर से उनके परवर्ती समावेश के परिणामस्‍वरूप
    ` 1.50 करोड़ का परिहार्य व्‍यय हुआ।

(कंडि‍का 3.2.1)

  • विद्युत नियमावली 1956 के तदनुरूप विभाग द्वारा स्थल उपयुक्तता सुनिश्चित करने में विफलता और तदुपरान्त 33 के.वी. विद्युत तार नहीं हटाए जाने के कारण चिकित्सकों/कर्मचारियों का आवास अनावासित रहा जिसके परिणामस्वरूप
    ` 1.71 करोड़ का निष्क्रिय व्यय हुआ।

(कंडि‍का 3.3.1)

  • प्रस्तावित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का उन्नयन कर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के भवन निर्माण/उन्‍नयन में विलम्ब के फलस्वरूप ` 1.92 करोड़ का निष्फल व्यय

(कंडि‍का 3.3.2)

  • मेगा स्‍पोर्टस कंप्लेक्स से संबंधित कार्य समय पर नहीं किये जाने के  परिणामस्वरूप ` 3.56 करोड़ का निष्‍फल व्‍यय।

(कंडि‍का 3.3.3)

  • पुनरीक्षित प्रशासनिक अनुमोदन प्राप्त किए बिना औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान भवन का निर्माण के फलस्‍वरूप ` 1.03 करोड़ का आवंटन नहीं हुआ तथा कार्य अपूर्ण रहा जिससे ` 3.49 करोड़ का व्यय निष्फल हुआ।

(कंडि‍का 3.3.4)

  • मुख्यमंत्री ग्राम सेतु योजना (मु.म.ग्रा.से.यो.) के अंतर्गत बियरगारा नदी पर निम्न स्तरीय और अपूर्ण निर्माण के कारण ` 2.18 करोड़ का अपव्यय।

(कंडि‍का 3.3.5)

  • निर्माण के लिए अनुपयुक्‍त भूमि का प्रावधान, अनुमानित व्‍यय के संशोधन में विलम्‍ब तथा संशोधित प्रशासनिक अनुमोदन में विलम्‍ब के परिणामस्‍वरूप उप-कारा के अपूर्ण निर्माण कार्य पर ` 1.61 करोड़ का निष्‍फल व्‍यय।

(कंडि‍का 3.3.6)

  • प्रशासनिक स्वीकृति एवं निधि की उपलब्द्धता के बिना कार्य प्रारम्भ किये जाने के कारण ` 1.49 करोड़ का खर्च होने के बाद भी चार वर्षों से अधिक समय से कार्य अपूर्ण रहा एवं इसके अलावा ` 91.48 लाख का दायित्व सृजित हुआ।

(कंडि‍का 3.4.1)

  • संवेदक को अधिक्य भुगतान तथा दण्‍ड/परिसमापन क्षति की उगाही नहीं होने के परिणामस्वरूप ` 1.03 करोड़ की वसूली नहीं हो सकी।

(कंडि‍का 3.4.2)

  • ससमय कार्रवाई करने में विफलता के परिणामस्वरूप अपूर्ण सड़कों पर
    ` 1.87 करोड़ का निष्फल व्यय।

(कंडि‍का 3.4.3)

  • कर्मचारि‍यों को कार्य प्रदान नहीं करने और उनकी सेवा का लाभदायी उपयोग करने में वि‍फलता के परि‍णामस्‍वरूप कर्मचारि‍यों पर ` 8.28 करोड़ का नि‍रर्थक व्‍यय साथ ही ` 1.71 करोड़ के यंत्र एवं संयंत्र नि‍ष्‍क्रि‍य पड़े रहे।

(कंडि‍का 3.4.4)

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