निष्‍पादन
छत्तीसगढ़

वर्ष 2022 का प्रतिवेदन क्रमांक-2- छत्तीसगढ़ में 74 वें संविधान संशोधन अधिनियम के कार्यान्वयन पर निष्पादन प्रतिवेदन 31 मार्च 2020 को समाप्त वर्ष के लिये

दिनांक जिस पर रिपोर्ट की गई है:
Tue 26 Jul, 2022
शासन को रिपोर्ट भेजने की तिथि:
सरकार के प्रकार:
राज्य
क्षेत्र स्थानीय निकाय

अवलोकन

74वां संविधान संशोधन जो 1 जून 1993 को प्रभावी हुआ ने लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के लिए एक स्पष्ट जनादेश प्रदान किया और देश के शहरी क्षेत्रों में स्वशासी स्थानीय निकायों के माध्यम से जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की शुरुआत के लिए एक संस्थागत ढांचा तैयार करने की मांग की। इसने शहरी स्थानीय निकायों को संविधान की 12वीं अनुसूची में सूचीबद्ध 18 कार्यों को करने का अधिकार दिया।

छत्तीसगढ़ भौगोलिक रूप से मध्य भारत में स्थित देश का नौवां सबसे बड़ा राज्य है जिसकी जनसंख्या 2.55 करोड़़ है जिसमें से 59.37 लाख शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। शहरी छत्तीसगढ़ को सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे, गरीबी उन्मूलन, अपशिष्ट प्रबंधन, प्राकृतिक संसाधनों की कमी, आदि जैसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस परिदृश्य में शहरी स्थानीय निकायों की एक महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि इनमें से अधिकांश मुद्दों को स्थानीय स्तर पर बेहतर तरीके से निपटाया जाता है।

छत्तीसगढ़ में शहरी स्थानीय निकायों के तीन स्तरों को उनके अधिकार क्षेत्र में जनसंख्या के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। इस लेखापरीक्षा का उद्देश्य यह देखना था कि क्या राज्य सरकार ने कार्यों, निधियों और पदाधिकारियों के हस्तांतरण द्वारा समर्थित एक मजबूत संस्थागत ढांचे के निर्माण के माध्यम से शहरी स्थानीय निकायों को सशक्त बनाया है।

हमने देखा कि परिसीमन का कार्य राज्य निर्वाचन आयोग को नहीं सौंपा गया है और 15 शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव एक वर्ष के विलंब से कराये गये।

शहरी स्थानीय निकायों के सफल कामकाज के लिए व्यवसायिक प्रक्रियाओं का पालन और विभिन्न समितियों की नियमित बैठकें अनिवार्य हैं। तथापि हमने देखा कि निगमों/परिषदों की बैठकें निर्धारित मानदंडों के अनुसार आयोजित नहीं की गई थीं। सलाहकार समितियों का गठन 10 शहरी स्थानीय निकायों में नहीं किया गया था। दूसरी ओर स्थानीय शासन में सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए बनाई जाने वाली वार्ड समितियों और मोहल्ला समितियों का गठन शहरी स्थानीय निकायों में नहीं किया गया था। आगे छत्तीसगढ़ नगर पालिक निगम अधिनियम में प्रावधान के अभाव के कारण किसी भी शहर में महानगर योजना समितियों का गठन नहीं किया गया। जिला योजना समितियों की बैठकें भी नियमित रूप से नहीं हुई और 12 जिलों में स्थित नमूना जांच किये गये 27 शहरी स्थानीय निकायों में से किसी भी जिले में सामान्य हित के मामलों को ध्यान में रखते हुए समग्र रूप से जिले के लिए समेकित जिला विकास योजनाओं को तैयार नहीं किया गया था।

राज्य वित्त आयोग का समय पर गठन और इसकी सिफारिशों पर तेजी से कार्रवाई करना शहरी स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिति को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण है। राज्य वित्त आयोगों के गठन में देरी (पहले से तीसरे) और उनकी रिपोर्ट प्रस्तुत करने में देरी, साथ ही निधियों के हस्तांतरण से संबंधित सिफारिशों की स्वीकृति और कार्यान्वयन में देरी ने शहरी स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। हमने देखा कि पांचवें राज्य वित्त आयोग देय होने के समय भी दूसरे राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार निधि का हस्तांतरण अभी भी किया जा रहा है।

हमने देखा कि शहरी स्थानीय निकायों द्वारा अपने स्रोतों से जुटाया गया राजस्व कम था। शहरी स्थानीय निकायों में संपत्ति कर और जल कर जो उनके दो सबसे बड़े महत्वपूर्ण राजस्व स्रोत हैं से संबंधित राशियाँ लंबित थीं। जीआईएस सर्वेक्षण जिसका संपत्ति कर पर पर्याप्त प्रगतिशील प्रभाव हो सकता है वह भी केवल 10 शहरी स्थानीय निकायों में कराया गया था। इसके अलावा यह देखा गया कि नगर पालिक निगम, कोरबा को छोड़कर किसी भी चयनित शहरी स्थानीय निकाय द्वारा पानी के कनेक्शन के लिए मीटर स्थापित नहीं किया गया और केवल निश्चित जल शुल्क लगाया जा रहा था जो जलापूर्ति के संचालन और रखरखाव पर खर्च का भुगतान करने के लिए भी पर्याप्त नहीं था।

कई वर्षों में बजट अनुमानों और वास्तविक आय एवं व्यय के बीच बड़े अंतर थे, जो अनुचित बजट निर्माण का संकेत देते थे।

किसी भी संस्थान के प्रभावी कामकाज के लिए पर्याप्त और उपयुक्त रूप से प्रशिक्षित मानव संसाधन महत्वपूर्ण है। शहरी स्थानीय निकायों के पास संविदा आधारित कर्मियों के अतिरिक्त न तो कर्मचारियों की आवश्यकता का आंकलन करने का अधिकार था और न ही आवश्यक स्थायी कर्मचारियों की भर्ती करने की शक्ति थी क्योंकि ये शक्तियां राज्य सरकार के पास निहित थीं। शहरी स्थानीय निकाय कर्मचारियों की भारी कमी के साथ काम कर रहे थे और आउट-सोर्स कर्मचारियों पर निर्भर थे। राज्य सरकार ने शहरी स्थानीय निकायों से वास्तविक आवश्यकता की मांग किये बिना मात्र जनसंख्या के आधार पर कर्मचारियों की आवश्यकता का आंकलन किया। अधिकांश कर्मचारी राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए गए थे और उनकी सेवाएं, अनुशासन और आचरण की शर्तों को विनियमित करने की शक्तियाँ राज्य सरकार के पास निहित थीं। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में प्रशिक्षण पाठ्यक्रम लगभग स्थिर रहे हैं, लेकिन कर्मचारियों की भागीदारी में कमी आई है।

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