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कार्यालय महालेखाकार (लेखा व हकदारी) – II, महाराष्ट्र, नागपुर का वर्तमान स्वरूप भारतीय लेखा एवं लेखापरीक्षा विभाग की पुनर्रचना के परिणामस्वरूप 01 मार्च, 1984 से है।
इस कार्यालय के पास वर्ष 1899 में निर्मित एक उल्लेखनीय उत्कृष्ट ब्रिटिश वास्तुशिल्प है। इस एक मंजिल भवन (पूर्व-पश्चिम 8273 वर्ग फुट) का स्वतन्त्रता से पूर्व “कोषागार भवन” के रूप में उपयोग होता था। इस भवन में 5 राजपत्रित अधिकारी, 5 अधीक्षक, 60 लिपिक और 15 श्रमिक के बैठने की क्षमता थी।
जब बेरार कार्यालय और वन लेखा का लेखापरीक्षा महालेखाकार कार्यालय को स्थानांतरित किया गया तब वर्ष 1905 में दो मंजिल भवन (उत्तर-दक्षिण 9461 वर्ग फुट) का निर्माण किया गया। इस भवन में 1 राजपत्रित अधिकारी, 3 अधीक्षक, 46 लिपिक और 14 श्रमिक बैठने की क्षमता थी।
स्वतंत्रता के पश्चात, ये भवन भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को सी.पी. और बेरार क्षेत्र के लिए वरिष्ठ उप महालेखाकार के कार्यालय को स्थापित करने के लिए आबंटित किए थे। तब से ये भवन भारतीय लेखा एवं लेखापरीक्षा विभाग के अधिकार क्षेत्र में है।
वरिष्ठ उप महालेखाकार, कार्यालयाध्यक्ष एक मंजिल इमारत के एकदम पश्चिम दिशा में स्थित कमरे में बैठते थे। यद्यपि यह सिद्ध करने के लिए कोई अधिकारिक प्रमाण नहीं है परंतु सेवानिवृत्त अधिकारियों से यह ज्ञात हुआ है कि इस इमारत में वरिष्ठ उप महालेखाकार के कमरे के ठीक सामने वाले कमरे में संभवतः वर्ष 1909-1910 के दौरान नोबेल पुरस्कार से सम्मानित सर सी.वी.रमन जो संघीय वित्तीय सेवा के सदस्य थे, बैठते थे।
ये भवन ईंट और चूना के मसाले से निर्मित है और इनकी बहुत मोटी दीवारें (संभवतः 14 इंच) हैं। शाहाबाद पत्थर के फर्श और लकडी के रेलिंग सहित लकडी का जीना आज भी अक्षुण्ण है। एक मंजिल भवन में चारों ओर बरामदा है जिसमें बलुआ पत्थर के फर्श एवं लकडी के खंबे हैं। पश्चिम दिशा के कमरे मूल अभिलेख कमरे हैं जहाँ रिकार्ड के संग्रहण के लिए लोहे की अलमारी रखी हैं। यहाँ तक कि लकडी के तख्तों पर बनी बीच की मंजिल आज भी अखंड और कामकाजी अवस्था में है। एक मंजिल भवन में दिखावटी छत ज्यामितीय काष्ठकला से सुसज्जित है जो आज भी पूरी तरह से अक्षुण्ण है। ऊँची छत, आकाशीय प्रकाश, चापाकार अलमारी और खपरैल की छत इन भवनों की विशिष्ट विशेषताएँ हैं।